शिक्षण के प्रकार

वृहत शिक्षण

वृहत शिक्षण का अर्थ विस्तार तरीके से पढ़ाने से है | वृहत शिक्षण में अध्यापक एक ही समय में सभी छात्रों को सूचना प्रदान करता है | यह शिक्षण पूरी कक्षा को लेकर होता है ना कि सूक्ष्म शिक्षण की तरह छोटे छोटे समूहों में | वृहत शिक्षण व्याख्यान विधि पर आधारित होता है | वृहत शिक्षण में छात्रों की संख्या ज्यादा होती है | जरूर देखे: बाल विकास और शिक्षा शास्त्र की अध्ययन सामग्री देखे (हिंदी में भी और इंग्लिश में भी)

टोली समूह शिक्षण

समूह शिक्षा या टोली शिक्षण, शिक्षण की एक सुव्यवस्थित प्रणाली है जिसमें कई शिक्षक मिलकर विद्यार्थियों के एक समूह को अनुदेशन प्रदान करते हैं और एक साथ मिलकर किसी विशिष्ट प्रकरण के लिए शिक्षक का उत्तरदायित्व लेते हैं | इसमें दो या दो से अधिक शिक्षक भाग लेते हैं | इसमें शिक्षण विधियों की योजना, समय तथा प्रक्रिया लचीली रखी जाती है ताकि शिक्षण उद्देश्य के अनुसार तथा शिक्षकों की योग्यता के अनुसार समूह शिक्षण के कार्यक्रम में आवश्यक शिक्षित परिवर्तन लाए जा सके |

पुनर् शिक्षण

पुनर शिक्षण का अर्थ है दोबारा पढ़ाना | पुनर शिक्षण में से अध्यापक सभी बच्चों को ध्यान में रखकर दोबारा से पाठ्यक्रम पढ़ाता है | इसमें इस बात पर ध्यान नहीं दिया जाता है कि किस बच्चे को वह पाठ याद है किसको नहीं | पूरा का पूरा पाठ सभी बच्चों को पढ़ाया जाता है चाहे भले ही किसी को वह पाठ याद हो |

उपचारात्मक शिक्षण

उपचारात्मक शिक्षण निदानात्मक मूल्यांकन के बाद होता है | जिन जिन बच्चों को किसी विशिष्ट पार्ट में दिक्कत आ रही है उन्हीं बच्चों को पढ़ाना उपचारात्मक शिक्षण कहलाता है | इस शिक्षण में हम उसी स्तर की बात करते हैं जिस तर में बच्चों को समस्या ना कि पूरा का पूरा दोबारा से पढ़ाने की |

शिक्षण के तरीके

  1. आगमन विधि : आगमन विधि में हम पहले बच्चों को उदाहरण देते हैं | बच्चों को प्रत्यक्ष अनुभव तथा उदाहरण अच्छी तरह से समझ जाते हैं | अतः जब अध्यापक उदाहरण देता है तो बच्चे उसे जीवन से संबंधित कर के अच्छे से सीख लेते हैं | यह विधि विशिष्ट से सामान्य की ओर चलती है | प्राथमिक स्तर पर ही है सबसे अच्छी विधि है |
  2. निगमन विधि : निगमन विधि में हम पहले नियम देते हैं | बच्चा नियमों को आत्मसात करके तेजी से सीख लेता है | बाद में वह नियमों से नियम बनाना भी सीख लेता है | गणित और व्याकरण में यह विधि सबसे ज्यादा सफल होती है | यह विधि सामान्य से विशिष्ट की ओर चलती है | यह विधि उच्चतर स्तर पर अपना ही जाती है |

किंडर गार्टन पद्धति

प्रणाली किंडर गार्टन प्रणाली के जन्मदाता जर्मनी के फ्रोबेल थे | इनके अनुसार स्कूल बच्चों का बाग है जिसमें बालक प्रक्रिया से स्वच्छता के वातावरण में खेल सके | किंडरगार्टन प्रणाली में बच्चों को खेल खेल में सिखाना होता है | किंडर गार्टन प्रणाली शिक्षा पद्ति के लाभ
  1. शिशु शिक्षा पर बल
  2. खेल द्वारा शिक्षा
  3. बालको की स्वतंत्रता
  4. व्यक्तित्व की विभिन्नताएं
  5. सामाजिक भावना का विकसित होना

मांटेसरी शिक्षा पद्धति

मांटेसरी शिक्षा के जन्मदाता मारिया मांटेसरी थी | उन्होंने कम बुद्धि बालक की शिक्षा का कार्य शुरू कर यह अनुभव किया की मानसिक कमजोरी ज्ञान इंद्रियों के उचित प्रशिक्षण के अभाव में उत्पन्न होती है | अतः इन्होंने कम बुद्धि वाले बच्चों को खेल विधि से सिखाने पर बल दिया |

मांटेसरी शिक्षा के गुण

  1. ज्ञानेन्द्रिओ के प्रशिक्षण पर बल दिया
  2. स्वतंत्रता पर बल दिया
  3. शारीरिक शिक्षा पर बल दिया
  4. स्व शिक्षा प्रबल दिया
  5. दंड का बहिष्कार
  6. शिक्षा खेल के माध्यम से देना

प्रोजेक्ट या परियोजना विधि 

  • प्रोजेक्ट शिक्षा प्रणाली के जन्मदाता किल पैट्रिक थे |
  • किल पैट्रिक के मतानुसार प्रोजेक्ट एक मनोनकूल साभिप्राय किया है जो सामाजिक वातावरण में अग्रसर होता है|

प्रोजेक्ट पद्धति की प्रक्रिया

  • अध्यापक बच्चों से वाद विवाद करके समस्या उत्पन्न करता है और बच्चों को बोलते हैं कि समस्या का हल ढूंढो बच्चे उस समस्या को लेकर प्रोजेक्ट बनाते हैं
  • प्रोजेक्ट बच्चों की इच्छा के अनुसार दिया जाता है ना कि अध्यापक की
  • प्रोजेक्ट के निर्वाचन होने के बाद उसकी संरचना बनाई जाती है
  • प्रोजेक्ट की समाप्ति पर मूल्यांकन किया जाता है

डाल्टन पद्धति 

  • यह शिक्षा पद्ति 1920 में कुमारी हेलन पार्क हर्स्ट द्वारा निकाली गई
  • हेलन अमेरिका के डाल्टन नगर में 30 बच्चों की इंचार्ज थी जो आयु तथा योग्यता से भिन्न भिन्न थे
  • उनकी शिक्षा के लिए अपनाए की विधि ही डाल्टन विधि कहलाई

डाल्टन पद्धति के गुण

  • शिक्षा व्यक्तिगत विभिंता पर आधारित
  • स्वयं क्रिया तथा अनुभव से सीखना
  • निश्चित समय में निश्चित कार्य करना
  • बालकों में उत्तरदायित्व तथा स्वालंबन की भावना विकसित करना
  • शिक्षक और बच्चों के मध्य गहरा संबंध विकसित होना |

पेस्टालॉजी विधि

पेस्टालॉजी विधि के प्रवर्तक जॉन हेनरी पेस्टालॉजी थे जिन्होंने शिक्षा का मनोवैज्ञानिक बनाया! इन्होंने शिक्षा शास्त्र पर बल दिया अर्थात अध्यापक को यह पता होना चाहिए कि बच्चों को कैसे पढ़ाना है, बच्चे किस आयु में कैसे सीखते हैं, बच्चे किस विधि से ज्यादा सीखते हैं आदि | इन के अनुसार शिक्षा स्वाभाविक प्रक्रिया है | मनुष्य के वृक्ष के समान है तथा वातावरण से पोषण लेकर फलता फूलता है | ऐसे ही बच्चों ने बच्चे अपने चारों तरफ के वातावरण से सब कुछ सीखता है और आगे बढ़ता है | इन्होंने बालक की क्रियाशीलता के आधार पर करने करके सीखने पर बल दिया |

स्वानुभविक / ‘हुरिस्टिक शिक्षण

हुरिस्टिक शिक्षण के प्रतिपादक आर्मस्ट्रांग थे | ‘हुरिस्टिक का अर्थ होता है – अन्वेषण | स्वाभाविक शिक्षण में बच्चा अपने आप खोजबीन करके सीखता है | इस शिक्षण में अध्यापक की सहायता और परामर्श की जरूरत नहीं पड़ती | बच्चा खुद ही समस्या का समाधान निकलता है | इस विधि में अध्यापक बच्चों की समस्या के लिए प्रशन दे देता है और वहां से हट जाता है जब बच्चे उसका हल खोजते हैं |

व्याख्यान विधि 

इस विधि में अध्यापक एक पाठ को तैयार करके आता है और किसी विषय के विविध पक्षों को विद्यार्थियों के सम्मुख प्रस्तुत करता है | यह विधि शिक्षक केंद्रित है | इस विधि का प्रयोग उच्चतर की शिक्षा के लिए किया जाता है |

परिचर्चा विधि

इस विधि में छात्र और अध्यापक आपस में किसी विषय पर चर्चा करते हैं | इस विधि के द्वारा सभी अपने अपने विचार रखते हैं | कई बार छात्र किसी विषय को लेकर विभेद भी करता है | इस विधि के द्वारा बच्चों में आत्मविश्वास बढ़ता है क्योंकि सभी छात्र अपने अपने विचार प्रस्तुत करते हैं |

निरूपण / निदर्शन विधि 

जब अध्यापक रोचक उदाहरणों, चार्ट। नक्शे। मॉडल। प्रोजेक्टर तथा अन्य प्रकार की शिक्षण सामग्री का प्रयोग करके पढ़ाता है तो या निरूपण विधि कहलाती है | यह एक बाल केंद्रित विधि है यह शिक्षण की सर्वोत्तम विधि मानी जाती है |